श्री गणेश मंदिर वक्रतुंड महाकाय। सूर्यकोटि सम प्रभ। निर्विघ्न कुरु मे देव। सर्व कार्येषु सर्वदा॥ अर्थात् जिनकी सूँड़ वक्र है, जिनका शरीर महाकाय है, जो करोड़ों सूर्यों के समान तेजस्वी हैं, ऐसे सब कुछ प्रदान करने में सक्षम शक्तिमान गणेश जी सदैव मेरे विघ्न हरें। शुभ कार्यो में प्रथम पूज्य श्री गणेशजी का आकर्षक एवं दर्शनीय मंदिर नगर के बीचों बीच बाज़ार चौक में स्थित है । यहाँ पर गणेश की मनोहारी पाषाण प्रतिमा मौजूद है । इस प्रकार की अत्यंत दुर्लभ प्रतिमा आस-पास के क्षेत्रो में कही भी नहीं है । मंदिर लगभग 250 वर्ष पुराना है । मंदिर में पीछे की और श्री हनुमान मंदिर एवं शिवजी का मंदिर है । गणेश चतुर्थी एवं अन्य विशेष अवसरों पर प्रतिमा का श्रृंगार देखते ही बनता है । गणेश जी को लगने वाला 56 भोग का प्रसाद भी लोकप्रिय है । गणेश चतुर्थी पर यंहा शुद्ध घी के लड्डू वितरित किए जाते है।
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सांवेर का इतिहास इतिहास के झरोखे में नजर डाले, तो सांवेर का उल्लेख मिलता है, सांवेर की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि सदियों पुरानी है। इसका उल्लेख यहाँ के मकान व शिलालेखो पर देखने को मिलता है। सांवेर का प्राचीन नाम " सगाना " हुआ करता था, जो कि श्री बाजीराव पेशवा के समय से सांवेर में परिवर्तित हो गया था । उपलब्ध जानकारी के अनुसार शंहशाह हुमायूँ के दिल्ली दरबार में जागीरदार माननीय श्री ठाकुर सिदासजी कानूनगो द्वारा हिजरी सन 966 वि.स. 1602 याने करीब 450 वर्ष पूर्व सांवेर की स्थापना की गयी। सांवेर में कुछ मकानों कि नक्काशी व शिल्पकार्य से भी अनुमान लगता है कि सांवेर पुरातनकाल में भी अस्तित्व में था। नगर के लगभग सभी मंदिरों मसलन राम मंदिर, कृष्ण मंदिर, शंकर मंदिर, केदारेश्वर मंदिर, नील कंठेश्वर मंदिर, गणेश मंदिर, काशी विश्वनाथ मंदिर, अनंतनारायण मंदिर आदि की स्थापना देवी अहिल्या बाई होल्कर के शासन काल में हुई थी। नगर के उज्जैन स्थित खेडापति हनुमान मंदिर (बड़े हनुमान मंदिर) की स्थापना श्री शिवाजी महाराज के दूत स्वामी समर्थ रामदासजी द्वारा की गयी थी। तात्कालिक समय में होलकर राजघराने की सीमा बड़े...
वीरांगना श्यामा बाई तंवर की समाधी सन 1680-85 के दौरान दिल्ली के बादशाह ओरंगजेब मालवा से होते हुवे गुजरात जाते समय सांवेर नगर उस समय के सगाना में खान नदी के किनारे अपने लाव-लश्कर के साथ विश्राम किया । तब उन्होंने सांवेर के तात्कालिक जागीरदार को अपने आने का सन्देश भिजवाया । जागीरदार अपने सैनिको के साथ बादशाह की अगवानी के लिए तोहफे लेकर पहुंचे तथा बादशाह का इस्तकबाल कर अगवानी की । बादशाह द्वारा जागीरदार को उनकी बेटी (पुत्री) का निकाह उनके साथ करने को कहा तथा कुछ सैनिको के साथ डोला जागीरदार के बड़ा रावला महल में भेजा । जागीरदार श्री तंवर की मनोदशा बड़ी विचित्र थी की वे क्या करे एक तरफ उनकी लाडली बेटी श्यामा और दूसरी और बादशाह का आदेश, अगर आदेश का पालन नहीं करे तो उनकी रियाया (जनता) के साथ उक्त अत्याचारी बादशाह क्या जुल्म करेगा यह सोचकर जागीरदार परेशान थे । उनकी परेशानी की जानकारी उनकी पुत्री श्यामा को मिली तो उन्होंने अपने पिता की परेशानी को दूर करने के लिए बादशाह के भेजे डोले के साथ जाने की इच्छा जताई, पिता ने भारी मन से अपनी पुत्री का डोला बादशाह के पास रवाना किया । लेकिन श्यामा के मन मे...
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