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Showing posts from June 25, 2010
श्री गणपति बुआ संस्थान सांवेर का यह गणपति बुआ संस्थान मंदिर 150 से अधिक साल पुराना है । नगर की यह धार्मिक धरोहर आज भी अपनी वास्तविक स्वरुप में कायम है । महाराष्ट्र व गुजरात के प्रसिद्द संत श्री गणपति बुआ द्वारा स्थापित इस संस्थान के प्रति इंदौर के होल्कर के अलावा ग्वालियर व बडौदा के महाराजाओ की भी गहरी निष्ठां रही है । इस संस्थान की विशेषता यह हे कि यहाँ की मूर्ति चल प्रतिमा है । " सांवेर आमची कसली, सांवेर गणपति बुंवाची, अशीच जगभर प्रसिद्धी आहे " । महाराज तुंकोजीराव होल्कर के उपरोक्त श्रद्धापूर्ण शब्द सांवेर के गणपति बुआ संस्थान के प्रसिद्ध संत गणपति बुआजी के लिए कहे गए है । महाराज जब भी सांवेर जाते तो इस महान योगी और उनकी कुटिया में विराजित श्री गणेशजी कि प्रतिमा के दर्शन हेतु पैदल ही जाते थे । महाराज होल्कर कि व्यक्तिगत श्रद्धा इतनी अधिक थी, कि उन्होंने संस्थान के लिए आने वाले सामान पर कोई चुंगीकर या अन्य कर न लगाने के आदेश दिए थे । पूर्व में गणेश उत्सव पर गणपति मंदिर से पालकी यात्रा जो पुरे नगर के मुख्य मार्गो से होकर निकाली जाती थी। संस्थान के वर्त
नील कंठेश्वर महादेव अहिल्याबाई के शासन काल में स्थापित शिवजी का यह मंदिर कटक्या नदी के तट पर केशरीपुरा में स्थित है । यंहा पर शिवलिंग एवं नदी की प्रतिमा स्थापित है ।शिवलिंग पर पीतल का जलाधारी चढ़ा हुआ है । वर्तमान में मंदिर का नवीनीकरण कर भव्य स्वरुप दिया गया है । शिवरात्रि पर विशेष श्रुंगार किया जाता है एवं संवारी निकाली जाती है ।
नाग मंदिर (नागपुर) सांवेर से 5 कि.मी. दूर नागपुर का नाग मंदिर बहुत प्राचीन व् प्रसिद्ध मंदिर है । पौराणिक मान्यता के अनुसार नाग मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा विक्रम संवत 1148 में हुयी थी । मंदिर में नागदेवता कि काले पत्थर की प्रतिमा है । प्रत्येक नागपंचमी पर यंहा श्रद्धालुओ कि भीड़ लगती है। सबसे मत्वपूर्ण है कि सदियों से यंहा पर हर नागपंचमी के दिन मेला लगता है।
श्री गणेश मंदिर वक्रतुंड महाकाय। सूर्यकोटि सम प्रभ। निर्विघ्न कुरु मे देव। सर्व कार्येषु सर्वदा॥ अर्थात् जिनकी सूँड़ वक्र है, जिनका शरीर महाकाय है, जो करोड़ों सूर्यों के समान तेजस्वी हैं, ऐसे सब कुछ प्रदान करने में सक्षम शक्तिमान गणेश जी सदैव मेरे विघ्न हरें। शुभ कार्यो में प्रथम पूज्य श्री गणेशजी का आकर्षक एवं दर्शनीय मंदिर नगर के बीचों बीच बाज़ार चौक में स्थित है । यहाँ पर गणेश की मनोहारी पाषाण प्रतिमा मौजूद है । इस प्रकार की अत्यंत दुर्लभ प्रतिमा आस-पास के क्षेत्रो में कही भी नहीं है । मंदिर लगभग 250 वर्ष पुराना है । मंदिर में पीछे की और श्री हनुमान मंदिर एवं शिवजी का मंदिर है । गणेश चतुर्थी एवं अन्य विशेष अवसरों पर प्रतिमा का श्रृंगार देखते ही बनता है । गणेश जी को लगने वाला 56 भोग का प्रसाद भी लोकप्रिय है । गणेश चतुर्थी पर यंहा शुद्ध घी के लड्डू वितरित किए जाते है।
श्री राम मंदिर केशरीपूरा सागवान की लकड़ी पर अद्भुत नक्काशी से सुसज्जित दो मंजिला इस मंदिर में राम लक्ष्मण व् सीता की मनोहारी प्रतिमाये विराजित है । सफ़ेद संगमरमर की इन अद्भुत प्रतिमाओ की ऊँचाई लगभग 2.5 फूट है । लगभग 300 वर्ष पुराना यह मंदिर समस्त ग्रामवासियों की आस्था का केंद्र है । मंदिर लगभग 1000 वर्ग फूट में फैला हुआ है । मंदिर के सामने ही मंदिर की धर्मशाला 20000 वर्ग फूट क्षेत्र में फैली हुई है । चांदी के मुकुट से सुस्सज्जित इन प्रतिमाओ का रामनवमी व् जन्माष्टमी पर विशेष श्रृंगार कर धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किये जाते है।
बरई माता मंदिर केशरीपूरा के बाहरी छोर पर कटक्या नदी के तट पर स्थित यह मंदिर समस्त नगर वासियों की आस्था एवं मन्नतो का प्रमुख केंद्र है। नगर के वरिष्ट लोग बताते है कि सांवेर स्थित चामुंडा माता की बड़ी बहन का यह स्थल होने से इसे बरई (बड़ी) माता मंदिर के नाम से जाना जाता है । छोटी से मंदिरी में स्थित इस 2.5 फूट ऊँची तेज़स्वी प्रतिमा पर सिंदूर का चोला चढ़ता है। प्रतिमा के समीप ही त्रिशूल लगा है। इस स्थान पर नवरात्री पर्व पर विशेष आयोजन होते है।
श्री आदिनाथ श्वेताम्बर जैन मंदिर जैन श्वेताम्बर आदिनाथ जैन मंदिर अति प्राचीन है भगवान आदिनाथ की प्रतिमा चमत्कारी तथा मनमोहक है मंदिर में प्रवेश करते ही मन को शांति और सुकून मिलता है , कहते है की मंदिर की स्थापना साढ़े चार सौ साल पूर्व सन 1560-61 में गुजरात से आये सेठ गणपत जी ने की थी , उस समय दो फूट चौड़ी तथा 40 फूट लम्बी गार्डर लाकर मंदिर में लगायी थी जो आज भी वैसी ही लगी है । इंदौर के होल्कर महाराज ने सेठ को नगर सेठ की उपाधि दी । जैन मंदिर में आज तक नगर सेठ कटारिया परिवार की और से पवित्र पयुर्षण पर्व पर भगवान महावीर स्वामी के जन्म वाचन पर पूजा प्रभावना का लाभ लिया जाता है । बाद में नगर सेठ परिवार ने उक्त मंदिर सांवेर के जैन समाज के सुपुर्द कर दिया । इसका संचालन अब जैन श्री संघ सांवेर करता है यंहा पर अनेक साधू-साध्वियो ने चातुर्मास किया तथा राष्ट्र संत आचार्य, साधू-साध्वी बिहार के दौरान आये तथा आदिनाथ भगवान की मनमोहक मूर्ति के दर्शन कर प्रभावित हुवे । मंदिर के गर्भगृह में जैन समाज के प्रथम तीर्थंकर श्री आदिश्वर भगवान् की ध्यानमग्न संगमरमर की प्रतिमा भव्य स्वरुप में
लालशाह वाली बाबा की दरगाह सांवेर के दक्षिण में इंदौर रोड पर स्थित सल्तनत कल की इस दरगाह के बारे में मान्यता है कि औरंगजेब को अपनी जिज्ञासाओ का समाधान यही मिलता था। आज भी यह स्थल हिन्दू एवं मुस्लिम दोनों धर्मावलंबियों के लिए समान निष्ठां का केंद्र है । कहते है कि इस मजार पर स्वंय लालशाहवली बाबा की व् उनकी माताजी तथा परिवार की मजार है । 3 बीघा में फैली इस दरगाह पर दूर-दूर से भाविक लोग मन्नत लेकर आते है । सबसे रहस्यप्रद बात यह है की दरगाह परिसर में 7 फूट लम्बा और 2 फूट चौड़ा तुअर का तना है जो कि आज भी कौतुहल पैदा करता है । दरगाह पर कई वर्षो से सतत शानदार उर्स का आयोजन किया जा रहा है , एवं यहाँ पर कितने ही नामचीन कव्वालो ने अपनी कलाम का तोहफा बाबा के चरणों में समर्पित कर चुके है जिनमें अलताफ राजा, अफजल सहीद जयपुरी एवं समीम नामिम ने भी अपने कलाम की प्रस्तुति दी। मुस्लिम समाज द्वारा इसका संचालन किया जाता है। पुराने लोग कहते है की एक गुप्त रास्ता जो यंहा से निकलता था जो उज्जैन के झुनझुन शाहवाले बाबा के दालान में निकलता था।
बड़े हनुमान मंदिर सांवेर के इस प्राचीन मंदिर की स्थापना छत्रपति शिवाजी के गुरु स्वामी समर्थ रामदासजी के कर कमलो द्वारा की गई थी। उन्होंने लगभग 450 वर्ष पूर्व अपने भ्रमण काल में पूर्ण भारत में 101 स्थानों पर अनेको मंदिरों की स्थापना की । इन्ही में से एक प्रतिमा यह भी है। इस अद्वितीय एवं चमत्कारी प्रतिमा की ऊंचाई लगभग 5.5 फूट एवं गोलाई लगभग 3 फूट है । वीर बजरंगी के इस मंदिर को पुराने लोग " उज्जैन वाले खेडापति " के नाम से भी जानते है। मंगल एवं शनिवार को श्रद्धालुओ का यंहा ताता लगा रहता है।