श्री गणपति बुआ संस्थान

सांवेर का यह गणपति बुआ संस्थान मंदिर 150 से अधिक साल पुराना है । नगर की यह धार्मिक धरोहर आज भी अपनी वास्तविक स्वरुप में कायम है । महाराष्ट्र व गुजरात के प्रसिद्द संत श्री गणपति बुआ द्वारा स्थापित इस संस्थान के प्रति इंदौर के होल्कर के अलावा ग्वालियर व बडौदा के महाराजाओ की भी गहरी निष्ठां रही है । इस संस्थान की विशेषता यह हे कि यहाँ की मूर्ति चल प्रतिमा है । "सांवेर आमची कसली, सांवेर गणपति बुंवाची, अशीच जगभर प्रसिद्धी आहे" । महाराज तुंकोजीराव होल्कर के उपरोक्त श्रद्धापूर्ण शब्द सांवेर के गणपति बुआ संस्थान के प्रसिद्ध संत गणपति बुआजी के लिए कहे गए है । महाराज जब भी सांवेर जाते तो इस महान योगी और उनकी कुटिया में विराजित श्री गणेशजी कि प्रतिमा के दर्शन हेतु पैदल ही जाते थे । महाराज होल्कर कि व्यक्तिगत श्रद्धा इतनी अधिक थी, कि उन्होंने संस्थान के लिए आने वाले सामान पर कोई चुंगीकर या अन्य कर न लगाने के आदेश दिए थे । पूर्व में गणेश उत्सव पर गणपति मंदिर से पालकी यात्रा जो पुरे नगर के मुख्य मार्गो से होकर निकाली जाती थी। संस्थान के वर्तमान व्यवस्थापक एवं स्वामी श्री वासुदेव सदाशिव महस्कर है ।सांवेर के 70 वर्षीय वासुदेव महस्कर जी वह शख्सियत है जिनके खजाने में अष्टधातु के सिक्को का,पुराने राजवंशियो, यु. के पाउंड, जर्मनी, रशिया, स्पेन, भारत, श्रीलंका तथा अन्य कई देशो के सिक्के तथा नोटों का अद्वितीय व् दुर्लभ संग्रह है । व्यक्ति अपने जीवन में किसी खास व्यक्ति का शादी का निमंत्रण,पत्र-पत्रिका कुछ वर्ष तक सहेज कर रखते है किन्तु महस्कर जी के पास शिवाजीराव महाराज की तीन लड़कियां लीलाबाई, भीमाबाई,सावित्रीबाई के शादी के निमंत्रण कार्ड, महाराजा यशवंत राव कि शादी की 27 पृष्ठ की लग्न पत्रिका एवं विवरणी , दीवाली, होली तथा अन्य समारोह, मेलो के आयोजनों का निमंत्रण,100 साल पुराने घी, दूध के भाव , सोने-चाँदी के भाव (गजट), रेल्वे सारणी , राजवी घराने की शाही पत्रिका, मौडी भाषा के कई पत्र-दस्तावेज,1854 से निकले हुए डाक टिकिट, पोस्टकार्ड एवं लिफापे व् वर्तमान के निकल रहे स्टाम्प आज तक मौजूद है एवं संग्रह जारी है ।

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