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Showing posts from December, 2010
वीरांगना श्यामा बाई तंवर की समाधी सन 1680-85 के दौरान दिल्ली के बादशाह ओरंगजेब मालवा से होते हुवे गुजरात जाते समय सांवेर नगर उस समय के सगाना में खान नदी के किनारे अपने लाव-लश्कर के साथ विश्राम किया । तब उन्होंने सांवेर के तात्कालिक जागीरदार को अपने आने का सन्देश भिजवाया । जागीरदार अपने सैनिको के साथ बादशाह की अगवानी के लिए तोहफे लेकर पहुंचे तथा बादशाह का इस्तकबाल कर अगवानी की । बादशाह द्वारा जागीरदार को उनकी बेटी (पुत्री) का निकाह उनके साथ करने को कहा तथा कुछ सैनिको के साथ डोला जागीरदार के बड़ा रावला महल में भेजा । जागीरदार श्री तंवर की मनोदशा बड़ी विचित्र थी की वे क्या करे एक तरफ उनकी लाडली बेटी श्यामा और दूसरी और बादशाह का आदेश, अगर आदेश का पालन नहीं करे तो उनकी रियाया (जनता) के साथ उक्त अत्याचारी बादशाह क्या जुल्म करेगा यह सोचकर जागीरदार परेशान थे । उनकी परेशानी की जानकारी उनकी पुत्री श्यामा को मिली तो उन्होंने अपने पिता की परेशानी को दूर करने के लिए बादशाह के भेजे डोले के साथ जाने की इच्छा जताई, पिता ने भारी मन से अपनी पुत्री का डोला बादशाह के पास रवाना किया । लेकिन श्यामा के मन मे
कट्क्या नदी सांवेर में कट्क्या नदी के तट पर इमली के पेड़ो के नीचे होल्कर घराने के हाथी-घोड़े बांधे जाते थे। इसको हाथी थान भी कहते है यंहा हाथियों को नहलाया जाता था। पूर्व में यंहा पनघट हुआ करता था , सारा सांवेर यंहा से पेयजल की व्यवस्था करता था । जब 1964 में अकाल पड़ा तब कट्क्या नदी के जल से आपूर्ति हुई थी। खुरासानी इमलीयां सांवेर क्षेत्र में खुरासानी इमली के पेड़ो की संख्या बहुत अधिक है, इन पेड़ो को जैन शास्त्रों में कल्पवृक्ष कहा गया है। सांवेर कोर्ट के पीछे परिसर में एक कल्पवृक्ष का पेड़ है जो 500 साल से अधिक पुराना है। यह पेड़ उन क्षेत्रो में देखने को मिलता है जंहा प्राचीन में किसी राजा-महाराजाओ का इतिहास रहा हो। इस पेड़ का तना 12 मीटर (36 फूट) से भी अधिक चौड़ा है, इसके तने में ऐसी सुन्दर नक्काशी देखने को मिलती है जैसे किसी कारीगर ने अपनों हाथो बनायीं हो।
सांवेर के भुट्टे भुट्टे के बिना सांवेर का इतिहास अधुरा लगता है । क्या कहना यंहा के भुट्टे का , सांवेर बायपास रोड के दोनों किनारों पर लगी दुकाने , गरमा-गरम धधकते अंगारों पर पकते स्वादिष्ट भुट्टो का जायका लिए बिना यंहा से कोई नहीं गुजरता । संत, नेता, अभिनेता, अफसर, उद्योगपति, समाजसेवी, कावड़यात्री व् अन्य कोई भी व्यक्ति हो यंहा के भुट्टे का स्वाद लिए बिना आगे नहीं बढता । 365 दिन यंहा भुट्टे का मेला लगा रहता है । कई मुसाफिर तो यंहा तक कहते है कि आप सांवेर से गुजरे और भुट्टे नहीं खाए तो समझो आपकी यात्रा अधूरी है । कई श्रद्धालु तो यंहा से कच्चे भुट्टे लेकर जाते है, और महाकाल को चढाते है ।बारिश के मौसम में तो भुट्टो के दीवानों की यंहा भीड़ रहती है, कई लोग भींगते भी है साथ में भुट्टे का मजा भी लेना नहीं भूलते ।
बस मार्ग सांवेर नगर माँ अहिल्याबाई होल्कर का प्राचीनतम नगर है, जो खान एवं कट्क्या नदी के किनारे पर बसा है। तीर्थनगर उज्जैन एवं औद्योगिक नगर इंदौर व् देवास के निकट में स्थित यह नगर जयपुर-कोटा मार्ग पर स्थित है। नगर में विभिन्न स्थानों को जाने के लिए लगभग 50 प्रायवेट बसे हर समय उपलब्ध रहती है। नगर से राज्य परिवहन निगम की बसे महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान के शहरो के लिए प्रतिदिन उपलब्ध रहती है । नगर से आगरा-बॉम्बे मेनरोड की दुरी 20 कि. मी. है, जंहा से बस मार्ग द्वारा कही भी पहुँचा जा सकता है। रेल मार्ग रेल मार्ग:- मीटर गेज :- चन्द्रावतीगंज व् अजनोद रेल्वे स्टेशन की दुरी यहाँ से लगभग 10 कि. मी. है। जहाँ से अजमेर हैदराबाद की ट्रेने सदा यात्रियों को उपलब्ध रहती है। ब्राड गेज :- सबसे निकटतम उज्जैन (22कि. मी) एवं इंदौर (30कि. मी) का रेलवे स्टेशन है जंहा यात्रियों को भारत के हर कोने में आवागमन हेतु सुलभ व्यवस्था उपलब्ध है। एयरलाइंस सांवेर से निकटतम एयरपोर्ट इंदौर 30 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। डोमेस्टिक एयरलाइंस जैसे इंडियन एयरलाइंस और निजी एयरलाइंस जैसे सहारा, जेट एयरवेज आदि जहा से दिल्ली,
काशी विश्वनाथ मंदिर धरमपुरी सांवेर से 15 कि.मी. दूर इंदौर मार्ग पर धरमपुरी के निकट मंगल धार्मिक ट्रस्ट इंदौर के रमेश मंगल द्वारा 16 अप्रैल 2000 को निर्मित सुन्दर एवं विशाल मंदिर में भगवान काशी विश्वनाथ का आकर्षक शिवलिंग स्थापित किया गया। जिसके दर्शनार्थ बड़ी संख्या में श्रद्धालु आकर पुण्य अर्जित करते है। मंदिर के आचार्य पं. गोपाल शास्त्री के सानिध्य में प्रतिवर्ष श्रावण मास में विशेष धार्मिक अनुष्ठान सम्पन्न होते है। समीप ही महामंडलेश्वर स्वामी बालकृष्ण यति जी कि प्रेरणा से भारतीय संस्कृति शिक्षण संस्थान स्थापित किया गया है। भगवान काशी विश्वनाथ मंदिर और समीप के मैदान पर यति जी महाराज की सद्प्रेरणा से इस क्षेत्र में सदी का विरला धार्मिक अनुष्ठान "कोटि रूद्र महायाग' निर्विघ्न सम्पन्न हुआ जिसकी लाखो जोड़ी आंखे साक्षी रही । इस महायाग के अनुष्ठान की सफलता और शुभ फल प्राप्ति के लिए महामंडलेश्वर वेदान्ताचार्य स्वामी बालकृष्ण यतिजी द्वारा शास्त्र के विशेष नियमो व् आज्ञा का पालन करवाया गया। यज्ञ के बारे में कहा जाता है कि यज्ञ से प्रकृति को उर्जा मिलती है। मानव शरीर पृथ्वी, जल, आग वाय
नरसिंह मंदिर केशरीपुरा इस मंदिर को "तपस्वी भूमि" के नाम से भी जाना जाता है। ये मंदिर कई तपस्वियों की तपो भूमि रह चूका है। बुज़ुर्ग लोगो का कथन है की प्राचीन समय में यंहा 4 संत "श्री १००८ रामचरण दास जी महाराज" , " श्री अलख महाराज" व् "श्री खाकी बाबा" एवं "इक फकीर" हुआ करते थे जिनकी समाधी एवं मजार सांवेर व् केशरीपुरा में स्थित है। हिन्दू-मुस्लिम एकता का अनूठा संगम अगर प्राचीन काल में कही देखा जाये तो सांवेर से बढकर इसका उदाहरण कही नहीं मिल सकता है। इन संतो के बारे में कहा जाता है की इनकी आपस में ऐसी गहरी निष्ठा थी कि बारिश, आंधी, तूफान भी इन्हें रोक नहीं सकते थे , ये संध्याकाल में कैसी भी विकट स्थिति होती थी चारो आपस में मिलते जरुर थे । श्री १००८ श्री रामचरण दास जी तपस्वी केशरीपुरा में कट्क्या नदी के किनारे नरसिंह मंदिर के संस्थापक स्वामी श्री १००८ श्री रामचरण दास जी तपस्वी एक महान संत एवं योगी थे, इनके संबंध में कहा जाता है कि जब इनके गुरु का देहावसान हुआ, तब इनके द्वारा किये गए भंडारे में शुद्ध घी के मालपुवे बनाये गए थे । तब घी की क