नरसिंह मंदिर केशरीपुरा

इस मंदिर को "तपस्वी भूमि" के नाम से भी जाना जाता है। ये मंदिर कई तपस्वियों की तपो भूमि रह चूका है। बुज़ुर्ग लोगो का कथन है की प्राचीन समय में यंहा 4 संत "श्री १००८ रामचरण दास जी महाराज", "श्री अलख महाराज" व् "श्री खाकी बाबा" एवं "इक फकीर" हुआ करते थे जिनकी समाधी एवं मजार सांवेर व् केशरीपुरा में स्थित है। हिन्दू-मुस्लिम एकता का अनूठा संगम अगर प्राचीन काल में कही देखा जाये तो सांवेर से बढकर इसका उदाहरण कही नहीं मिल सकता है। इन संतो के बारे में कहा जाता है की इनकी आपस में ऐसी गहरी निष्ठा थी कि बारिश, आंधी, तूफान भी इन्हें रोक नहीं सकते थे , ये संध्याकाल में कैसी भी विकट स्थिति होती थी चारो आपस में मिलते जरुर थे ।

श्री १००८ श्री रामचरण दास जी तपस्वी

केशरीपुरा में कट्क्या नदी के किनारे नरसिंह मंदिर के संस्थापक स्वामी श्री १००८ श्री रामचरण दास जी तपस्वी एक महान संत एवं योगी थे, इनके संबंध में कहा जाता है कि जब इनके गुरु का देहावसान हुआ, तब इनके द्वारा किये गए भंडारे में शुद्ध घी के मालपुवे बनाये गए थे । तब घी की कमी के कारण इन्होने कट्क्या नदी में से पानी के डिब्बे भरकर उस पानी से मालपुवे तैयार कर उस भंडारे का आयोजन किया, तत्पश्चात शुद्ध घी के डिब्बे बुलवाकर नदी में विसर्जित किये । इनका मानना था की घी उधार लिया गया था, इसीलिए नदी में विसर्जित किया गया ।अब इस मंदिर का जीर्णो उद्धार करके भव्य नरसिंह मंदिर बनाया गया है ।

अलख महाराज

इन्ही के समकालीन श्री अलख महाराज नागा संप्रदाय से जुड़े हुए एक दिव्य योगी थे। इनके बारे में कहा जाता है कि ये प्रतिदिन एक घर पर भिक्षा के अलख निरंजन किया करते थे एवं दुसरें घर पर पानी के अलख जगाते थे। ये इनका नित्य कर्म था । कहते है कि ये एक बार भिक्षा वृति के लिए गए तब किसी ने इनको भिक्षा न देकर अपशब्द कहे, तब इन्हें संसार से विरक्ति हो गयी और इन्होने कट्क्या नदी के किनारे जीवित समाधी ले ली । जंहा अभी एक शंकर मंदिर स्थित है । समय-समय पर ये अपनों भक्तो को दर्शन भी देते है ,और उनकी मनोकामना पूर्ण करते है ।जिसके कई प्रमाण आज सांवेर में मौजूद है ।

खाकी महाराज (उल्टे हनुमान मंदिर)

उल्टे हनुमान मंदिर के महंत श्री १००८ खाकी महाराज जो कि सांवेर की दिव्य विभूति थे । इनके बारे में वर्तमान पुजारी द्वारा बताया गया कि ये एक महान योगी एवं विरक्त संत होते हुए कई दिव्य सिद्धियों के ज्ञाता थे । वे बताते है कि ये चारो संत किसी भी विकट परिस्थिति में आपस में मिलते थे, ज्ञान चर्चा करते थे, एवं महांकाल दर्शन के लिए जाते थे । वे अपनी खडाऊ पहनकर नदी पार कर लेते थे । इन्ही महंत की समाधी उल्टे हनुमान मंदिर में स्थित है और ये हनुमान जी के परम उपासक थे ।

फकीर

ये फकीर बाबा भी उपरोक्त संतो की तरह दिव्या शक्तियों के ज्ञाता थे । पानी पर चलना, पल भर में मिलो का सफ़र करना तय करना ये उनके लिए साधारण बात थी। इनकी मजार मानक चौक में खान नदी के किनारे पर बनी हुयी है ।

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